उत्तर प्रदेश की सरकारी शिक्षा प्रणाली पर एक बार फिर गंभीर चिंता जताई जा रही है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 5695 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक ही शिक्षक बच्चों की पूरी जिम्मेदारी उठा रहा है। यह न केवल बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि शिक्षा मंत्रालय की योजनाओं और उनके क्रियान्वयन की सच्चाई भी उजागर करता है।
2025-26 के लिए केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट से खुलासा
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेजी गई उत्तर प्रदेश की प्रस्तावित रिपोर्ट में यह आंकड़ा सामने आया है कि प्रदेश के 2586 परिषदीय प्राथमिक विद्यालय और 3109 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में महज एक शिक्षक कार्यरत है। इस रिपोर्ट का आधार वर्ष 2023-24 की शिक्षकीय स्थिति रही है।

बच्चों की संख्या और शिक्षा की स्थिति
सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे 7037 स्कूलों में 30 या उससे अधिक छात्र पढ़ते हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता और प्रत्येक छात्र को मिलने वाला व्यक्तिगत मार्गदर्शन अत्यंत प्रभावित होता है। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में शिक्षक पर अत्यधिक भार पड़ता है और न तो शिक्षक अपनी भूमिका सही ढंग से निभा पाता है और न ही छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाती है।
गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की भी स्थिति चिंताजनक
प्रदेश में वर्ष 2011 में RTE लागू होने के बाद भी कई स्कूल बिना मान्यता के संचालन में हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में प्रदेश में 22628 विद्यालय ऐसे हैं जिनकी अभी भी मान्यता नहीं हुई है। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा प्रणाली में अनुशासन और नियंत्रण का अभाव है।
शिक्षकों की भर्ती की धीमी प्रक्रिया
राज्य में शिक्षकों की भारी कमी वर्षों से बनी हुई है। पिछले वर्षों में शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया अत्यंत धीमी रही है। वर्ष 2022-23 की तुलना में वर्ष 2023-24 में केवल 1329 शिक्षकों की भर्ती की गई, जो कि आवश्यक संख्या से कहीं कम है। इस कारण विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपलब्धता बनी हुई है।
शिक्षकों की पोस्ंटिंग प्रणाली पर उठे सवाल
2015 के बाद से कोई भी नई शिक्षक नियुक्ति एकल विद्यालयों में नहीं की गई है। वर्ष 2018 में सहायक अध्यापकों की भर्ती के दौरान भी इस मुद्दे पर कोई ठोस समाधान नहीं दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि नीति-निर्माण में गंभीर खामियां हैं और ग्राउंड लेवल पर कार्यान्वयन की गुणवत्ता बेहद कम है।
आगे क्या हो?
शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह निम्नलिखित बिंदुओं पर कार्य करे:
एकल शिक्षक विद्यालयों में दो या उससे अधिक शिक्षकों की अनिवार्य नियुक्ति।
स्कूलों को मान्यता देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी।
शिक्षकों की नियुक्तियों को समयबद्ध और बड़े पैमाने पर पूरा करना।
तकनीकी माध्यमों जैसे डिजिटल लर्निंग टूल्स का बेहतर उपयोग ताकि शिक्षक भार कुछ हद तक कम हो सके।
सरकारी पोर्टल जैसे https://www.educationportal.gov.in पर नियमित आंकड़े अपडेट कर पारदर्शिता लाई जाए।
निष्कर्ष
एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हजारों स्कूलों की स्थिति यह दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर सख्त और ठोस कदम उठाने होंगे। जब तक हर विद्यालय में योग्य शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं होगी, तब तक न तो शिक्षा का स्तर सुधरेगा और न ही ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’ जैसा सपना साकार हो पाएगा।