देश के कई हिस्सों में लंबे समय से बच्चों का स्कूल छोड़ना एक बड़ी सामाजिक और शैक्षणिक चुनौती रही है। लेकिन हाल के वर्षों में शिक्षा विभाग की विशेष पहल और प्रयासों के चलते अब तस्वीर बदलती नज़र आ रही है। खास तौर पर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पिछले कुछ वर्षों में लाखों बच्चे स्कूल की दहलीज़ पर दोबारा लौटे हैं।
पाँच साल में 22 लाख से ज़्यादा बच्चों का पुनः नामांकन
बेसिक शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 से लेकर 2024-25 तक के बीच लगभग 22 लाख उन बच्चों का दोबारा नामांकन हुआ है, जिन्होंने किसी कारणवश पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी। इनमें कई बच्चे ऐसे थे जो बाल श्रमिक की श्रेणी में आ चुके थे, तो कुछ ऐसे जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी।
शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में अब तक 7,71,617 बच्चों को दोबारा स्कूल से जोड़ा गया है, जो पिछले वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है। यह आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि सरकार के प्रयास धरातल पर असर दिखा रहे हैं।
बच्चों को स्कूल वापस लाने की रणनीति
बेसिक शिक्षा विभाग ने ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं। बच्चों की घर-घर जाकर पहचान की जाती है और यदि कोई छात्र लगातार छह दिन तक स्कूल नहीं आता, तो स्कूल प्रबंधन द्वारा उसके अभिभावकों से संपर्क किया जाता है। यदि इसके बावजूद 15 दिन तक उपस्थिति दर्ज नहीं होती, तो बच्चे को ‘बुलावा टोकन’ के ज़रिए स्कूल आने का निर्देश दिया जाता है।
यदि बच्चे के आने में कोई विशेष कारण सामने आता है—जैसे आजीविका, देखभाल या बाल श्रम—तो विभाग संबंधित अभिभावकों को परामर्श देता है और बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए आवश्यक सहयोग देता है।
डेटा जो भरोसा दिलाता है
शैक्षणिक सत्र | पुनः नामांकित बच्चे | बाल श्रमिक के रूप में दर्ज बच्चे |
---|---|---|
2020-21 | 2,60,306 | 5,550 |
2021-22 | 4,81,383 | 5,128 |
2022-23 | 4,03,024 | 10,640 |
2023-24 | 3,30,876 | 9,703 |
2024-25 | 7,71,617 | 1,462 |
इस तालिका से स्पष्ट है कि जहाँ पुनः नामांकन में वृद्धि हुई है, वहीं बाल श्रम में लगे बच्चों की संख्या में कमी आई है, जो एक सकारात्मक संकेत है।
सामाजिक भागीदारी और सरकार की जिम्मेदारी
इस बदलाव में सिर्फ शिक्षा विभाग ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, शिक्षक समुदाय और स्वयंसेवी संगठनों की भी बड़ी भूमिका रही है। कई स्कूलों में विशेष प्रशिक्षण सत्र (ब्रिज कोर्स) शुरू किए गए हैं, ताकि जो बच्चे वर्षों से पढ़ाई से दूर हैं, वे बाकी छात्रों के साथ तालमेल बिठा सकें।
निष्कर्ष: शिक्षा की रौशनी की ओर एक नई शुरुआत
देश में शिक्षा की दिशा में यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के निर्माण की नींव है। यदि यह रफ्तार बरकरार रहती है तो आने वाले वर्षों में ड्रॉपआउट जैसी समस्या सिर्फ अतीत बनकर रह जाएगी।
अगर आपके आस-पास कोई बच्चा स्कूल से वंचित है, तो आप भी इस मुहिम में भागीदार बन सकते हैं। अधिक जानकारी और सहयोग के लिए राज्य शिक्षा विभाग की आधिकारिक वेबसाइट या स्थानीय शिक्षा कार्यालय से संपर्क करें।