उत्तर प्रदेश में कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों को एक-दूसरे में मर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाना और संसाधनों का प्रभावी उपयोग करना है। लेकिन, इस प्रयास में अब असमानता और स्पष्ट नीति की कमी सामने आ रही है।
कई जिलों में अधिकारी अपनी मर्जी से निर्णय ले रहे हैं कि किन स्कूलों को मर्ज करना है। कहीं 10 छात्रों पर स्कूल मर्ज कर दिए जा रहे हैं, तो कहीं 50 या उससे भी कम संख्या को आधार बनाकर स्कूलों का विलय किया जा रहा है। जबकि शासन की ओर से न तो कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी की गई है और न ही न्यूनतम छात्र संख्या की कोई बाध्यता तय की गई है।
पैरेंट्स और पंचायतें भी कर रही हैं विरोध
इस अनियमितता के कारण कई अभिभावकों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नाराज़गी सामने आ रही है। कई क्षेत्रों में स्कूलों का मर्जर अभिभावकों की सहमति के बिना किया गया है, जिससे स्थानीय विद्यालय प्रबंधन समितियाँ और ग्राम पंचायतें विरोध दर्ज कर रही हैं। उन्हें लगता है कि इससे बच्चों की पढ़ाई बाधित हो सकती है और स्कूल तक पहुँचने में दिक्कत होगी।
बिना संख्या तय किए कैसे चलेगा मर्जिंग प्रोग्राम?
शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों की मानें तो मर्जिंग के लिए कोई न्यूनतम छात्र संख्या तय नहीं की गई है। स्कूल शिक्षा के महानिदेशक के अनुसार, “पैरिंग की कोई बाध्यता नहीं है। जहाँ अभिभावक सहमत हैं, वहीं पर यह प्रक्रिया अपनाई जाएगी। जिलाधिकारियों और बीएसए को स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने की छूट दी गई है।”
हालांकि, इसी छूट का कुछ अधिकारी गलत फायदा उठा रहे हैं। कोई सिर्फ 15 छात्रों पर स्कूल मर्ज कर रहा है, जबकि कुछ मामलों में 45 छात्रों वाले स्कूल भी मर्ज कर दिए गए हैं।
शिक्षा की गुणवत्ता पर असर
स्कूलों को मर्ज करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना है, लेकिन यदि यह प्रक्रिया बिना ठोस नीति और स्थानीय सहमति के की जाती है, तो इसका विपरीत असर हो सकता है। छात्रों को दूरी की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ सकता है या उपस्थिति कम हो सकती है। इससे न केवल शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होगा बल्कि ड्रॉपआउट रेट भी बढ़ सकता है।
ज़मीनी स्तर पर चुनौतियाँ
कई स्कूलों में भवन की स्थिति अच्छी नहीं है या फिर पर्याप्त कमरे नहीं हैं। यदि एक स्कूल में दो या तीन स्कूलों का विलय कर दिया जाए, तो वहां छात्रों के बैठने, पढ़ने और खेलने की व्यवस्था करना बेहद मुश्किल हो सकता है। इस प्रकार की स्थिति न केवल छात्रों को प्रभावित करती है, बल्कि शिक्षकों के लिए भी कार्य कठिन बना देती है।
क्या हो अगला कदम?
राज्य सरकार को इस विषय पर स्पष्ट और पारदर्शी नीति बनानी चाहिए। मर्जर की प्रक्रिया तभी अपनाई जाए जब:
अभिभावकों की स्पष्ट सहमति हो।
स्कूल भवन में पर्याप्त स्थान और संसाधन उपलब्ध हों।
न्यूनतम छात्र संख्या की सीमा निर्धारित की जाए।
परिवहन की उचित व्यवस्था हो।
इसके साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शिक्षा की गुणवत्ता में कोई गिरावट न आए और छात्रों के भविष्य के साथ कोई समझौता न हो।
निष्कर्ष
बेसिक स्कूलों के मर्जर का विचार शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने के लिए उचित हो सकता है, लेकिन इसे लागू करते समय पारदर्शिता और नीति की स्पष्टता अत्यंत आवश्यक है। यदि स्कूलों का विलय बिना उचित मापदंडों और स्थानीय सहमति के किया गया, तो इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में ठोस कदम उठाए और अभिभावकों, शिक्षकों तथा स्थानीय समुदाय को विश्वास में लेकर ही निर्णय ले।