UPTET Paper 1 Sectional Test 1 – संस्कृत (Sanskrit) Quiz: UPTET (उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा) के संस्कृत भाषा खंड का उद्देश्य उम्मीदवारों की भाषा-ज्ञान, व्याकरणिक क्षमता और शिक्षण दृष्टिकोण की समझ को परखना है। यह खंड प्राथमिक स्तर (Paper 1) के लिए अत्यंत आवश्यक है, विशेषकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो संस्कृत विषय में शिक्षक बनना चाहते हैं। इस क्विज़ के माध्यम से आप अपने संस्कृत भाषा ज्ञान को सुदृढ़ कर सकते हैं और परीक्षा पैटर्न को बेहतर समझ सकते हैं।
इस UPTET Paper 1 Sectional Test 1 – संस्कृत क्विज़ में पिछले वर्षों के महत्वपूर्ण प्रश्नों को सम्मिलित किया गया है जो परीक्षा के स्तर और प्रश्नों की प्रकृति को दर्शाते हैं। यह क्विज़ न केवल आपके व्याकरण, शब्दार्थ, वाक्य रचना और शिक्षण दृष्टिकोण का परीक्षण करती है, बल्कि आपकी कमजोरियों को पहचानने और सुधारने में भी सहायता करती है। नियमित अभ्यास से आप संस्कृत खंड में उच्च अंक प्राप्त कर सकते हैं।

UPTET Paper 1 Sectional Test 1 – संस्कृत (Sanskrit) Quiz
Comprehension: (Que No. 9 - 11)
निर्देश:- अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदनन्तरं प्रदत्तप्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेषु समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत-
परेषाम् उपकारः परोपकारः अस्ति। परोपकारप्रवृत्या एव मनुष्यः पशुभ्यः पृथक्भवति। आहारादिप्रवृत्तयः तु पशुषु अपि तथैव भवति तथा मानवेषु। परं मानवः स्वविवेकेन उचितानुचितज्ञानेन एव आत्मानम् उच्चासने उच्चपदे च स्थापयति। वृक्षाः स्वयं न खादन्ति, ते परेषां कृते एव फलानि छायाः च ददति। नद्यः परोपकाराय एव वहन्ति, गावः अन्येभ्यः एव दुग्धं यच्छन्ति।एवमेव अनेके प्रातःस्मरणीयाः महापुरुषाः अपि अभवन् ये स्वप्राणान् उत्सृज्य देशस्य समाजस्य च रक्षाम् अकुर्वन्। राजा शिविः शरणागतस्य कपोतस्य रक्षायै स्वशरीरस्यमांसं कर्तयित्वा श्येनाय दत्तवान्। ऋषिः दधिचिः अपि वृत्रासुरवधाय स्वास्थीनि सहर्षम् अयच्छत्। अद्यापि लोके अनेके समाजसुधारकाः सन्ति ये स्वार्थं परित्यज्य लोककल्याणं कुर्वन्ति। अतः सत्यमेव कथितम्-
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।
व्याख्या:
समस्तपद - ‘द्वादश’
समास नाम - 'द्वन्द्व' समास
संस्कृत समास विग्रह = ‘द्वौ च दश च’
अर्थ - दो और दस (बारह)
"उभयपदार्थप्रधान:" अर्थात् जिसमे दोनो पद प्रधान हो, उसे द्वन्द्व समास कहते हैI
सूत्र = चार्थे द्वन्द्व
- यह सूत्र च के प्रयोग के लिये प्रयुक्त किया जाता हैI
- सूत्र के अनुसार च के अर्थ में वर्तमान अनेक सुबन्तों का विकल्प से समास होता हैI
- च दो पदो अथवा वाक्यों को जोडता हैI
- च के अनेक अर्थ बताये गये है, लेकिन वृत्ति मे च के चार अर्थ बतलाये है- समुच्चय, अन्वाचय, इतरेतर और समाहारI
जैसे = द्वादश → द्वौ च दश च (यहा पर दो पद हैI एक द्वौ और दूसरा दश है, जिसको चार्थे सूत्र द्वारा च के अर्थ मे जोड दिया गया हैI)
Key Point:
समस्तपद 'द्वादश' में दोनों पदों समान रूप से प्रधान होने के कारण द्वंद्व समास है।
Confusion Points:-
जिस समास में पूर्व पद संख्या किन्तु उत्तर पद प्रधान होता है वह द्विगु तत्पुरुष समास होता है। परन्तु प्रस्तुत समास 'द्वादशः' में पूर्व पद 'द्वा' और उत्तर पद 'दश' दोनों पद समान महत्वपूर्ण है अर्थात दोनों प्रधान होने के कारण यह द्वंद्व समास होता है।
अर्थ के अनुसार द्वादश का अर्थ 'दो और बारह' होता है जो द्वंद्व समास में होता है, द्विगु समास से इसका और 'दो बार दस' होगा जो अनुचित है। अतः इसे द्विगु कहना भी अनुचित होता है।
स्पष्टीकरणम् -
- शब्द - त्रिनेत्रम्
- समास विग्रह - त्रयाणां नेत्राणां समाहारः
सूत्र - संख्यापूर्वो द्विगुः।
- नियम - जब प्रथम शब्द संख्यावाची होता है और दूसरा शब्द संज्ञा शब्द होता है, तो वहाँ द्विगु समास होता है। यह तत्पुरुष समास का ही भेद है।
उदाहरण -
- चतुर्युगम् - चतुर्णां युगानां समाहारः (यहाँ प्रथम पद संख्यावाची एवं दूसरा पद संज्ञा शब्द है।)
इसी प्रकार त्रिनेत्रम् पद में प्रथम पद संख्यावाची होने से यहाँ द्विगु समास हुआ।
अतः द्विगु समास सही उत्तर है।
Additional Information
अन्य विकल्प-
द्वन्द्व समास - ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रधान होते हैं, वहाँ द्वन्द्व समास होता है।
उदाहरण -
- रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च - रामलक्ष्मणभरताः
- पाणी च पादौ च - पाणिपादम्
बहुव्रीहि समास - ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ दो या दो से अधिक समस्त शब्द किसी अन्य पद को इंगित करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है।
उदाहरण -
- महान् आत्मा यस्य सः (बुद्धः) - महात्मा
- दश आननानि यस्य सः (रावणः) - दशाननः
कर्मधारय समास - यह तत्पुरुष समास का ही भेद है।ऐसा तत्पुरुष समास जहाँ विशेषण-विशेष्य और उपमान-उपमेय का सम्बन्ध होता है, वह कर्मधारय समास होता है।
उदाहरण-
- पीतम् उत्पलम् - पीतोत्पलम्
- घन इव श्यामः - घनश्यामः